आज की दुनिया में इंग्लिश एक ऐसी भाषा बन चुकी है जो लगभग हर देश और हर कॉन्टिनेंट में बोली जाती है। इंटरनेट से लेकर एजुकेशन और प्रोफेशनल लाइफ़ तक, इंग्लिश अब ग्लोबल कनेक्शन की भाषा है। यही वजह है कि हर कोई इसे सीखने की कोशिश करता है।
लेकिन अक्सर लोग इंग्लिश सीखते समय एक बहुत बड़ी गलती करते हैं, वे फ्लुएंसी को सबसे ज़रूरी मान लेते हैं।
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फ्लुएंसी बनाम क्लैरिटी
हम सभी सोचते हैं कि इंग्लिश बोलने के लिए फ्लुएंसी ज़रूरी है। जबकि सच यह है कि फ्लुएंसी नाम की कोई चीज़ असल में नहीं होती। यह तो बस फिल्मों और गानों को देखकर हमने मान लिया कि अगर तेज़-तेज़ और बिना रुके बोले तो वह अच्छी इंग्लिश है।
असल में, तेज़ बोलना उतना महत्वपूर्ण नहीं है। असली ताक़त है क्लैरिटी में।
आपकी कोशिश यह होनी चाहिए कि आपकी बात सामने वाले तक साफ़ और आसानी से पहुँच सके। धीरे बोलो, लेकिन साफ़ बोलो। यही असली इंग्लिश है।
कितने शब्दों की ज़रूरत है?
बहुत से लोग सोचते हैं कि इंग्लिश बोलने के लिए हज़ारों शब्दों की जानकारी ज़रूरी है। लेकिन सच यह है कि आपको शुरुआत में 10,000 शब्द याद करने की कोई ज़रूरत नहीं।
अगर आप केवल 50–60 शब्दों से ही सही तरीके से बोलना शुरू कर दें तो आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा।
असल समस्या यह है कि लोग शब्द इकट्ठा करते रहते हैं लेकिन उन्हें बोलने की प्रैक्टिस नहीं करते। याद रखिए, असली सीख तब होती है जब आप कम शब्दों से भी लगातार बोलने लगते हैं।
क्या ग्रामर परफेक्ट होना ज़रूरी है?
अधिकतर लोग ग्रामर को लेकर परेशान रहते हैं। वे सोचते हैं कि जब तक परफेक्ट ग्रामर नहीं होगी, तब तक उनकी इंग्लिश अच्छी नहीं लगेगी।
लेकिन ध्यान दीजिए, जब आप किसी को सुनते हैं तो आप इस बात पर ध्यान देते हैं कि वह क्या कहना चाहता है, न कि उसकी ग्रामर कैसी है।
इसी तरह, जब आप बोलते हैं तो सामने वाले को भी आपकी बात से मतलब होता है, न कि आपके ग्रामर से। इसलिए ग्रामर की परफेक्शन का डर छोड़ दीजिए और बोलना शुरू कीजिए।
लोग अगर आपको आपकी ग्रामर पर जज करते हैं तो यह उनकी छोटी सोच है। स्ट्रॉन्ग माइंडसेट वही है जो दूसरों के जजमेंट की परवाह किए बिना आगे बढ़ता है।
सिर्फ़ सुनो मत, एग्जीक्यूट करो
यह सबसे अहम बात है। आप कितनी भी वीडियो देख लें, कितनी भी किताबें पढ़ लें, लेकिन अगर आप एग्जीक्यूट नहीं करेंगे तो इंग्लिश कभी नहीं आएगी।
यह बिल्कुल ऐसा है जैसे सामने खाना रखा हो। सिर्फ़ देखकर या सूंघकर पेट नहीं भरता। खाना खाने के लिए आपको हाथ बढ़ाना ही पड़ेगा।
इसी तरह, इंग्लिश सीखने के लिए आपको कदम बढ़ाने होंगे। बस सुनने या देखने से काम नहीं चलेगा। बोलना, लिखना और प्रैक्टिस करना ही असली समाधान है।
निष्कर्ष (Conclusion)
इंग्लिश सीखना उतना मुश्किल नहीं जितना हम सोच लेते हैं। ज़रूरी है कि हम तीन चीज़ों को समझें—
- फ्लुएंसी नहीं, क्लैरिटी ज़रूरी है।
- हज़ारों शब्दों की नहीं, आत्मविश्वास की ज़रूरत है।
- ग्रामर परफेक्ट नहीं, बोलने की हिम्मत ज़रूरी है।
अगर आप आज से ही छोटे-छोटे स्टेप्स लेना शुरू कर देंगे, तो कल आप किसी और को सिखा रहे होंगे कि इंग्लिश कैसे सीखी जाए।
अब फैसला आपका है। क्या आप इस आर्टिकल को पढ़कर भी सिर्फ़ बैठ जाएंगे, या फिर आज से ही बोलने और प्रैक्टिस करने की शुरुआत करेंगे?